अजमेर शरीफ दरगाह: ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के 813वें उर्स की शुरुआत
भारत की समृद्ध आध्यात्मिक विरासत और आपसी सद्भाव के प्रतीक अजमेर शरीफ दरगाह में ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के 813वें उर्स की शुरुआत हो चुकी है। इस मौके पर देशभर से श्रद्धालु अपनी मन्नतें लेकर दरगाह पर पहुंचे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस अवसर पर विशेष चादर भेजी है, जो दरगाह पर चढ़ाई जाएगी। आइए, इस ऐतिहासिक परंपरा और दरगाह के महत्व के बारे में जानते हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने भेजी चादर
चादर का समर्पण: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के 813वें उर्स पर दरगाह के लिए एक चादर भेजी। यह चादर अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू और बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा के अध्यक्ष जमाल सिद्दीकी को सौंपी गई।
पैगाम मोहब्बत का: किरेन रिजिजू ने कहा कि यह चादर प्रधानमंत्री के "मोहब्बत और भाईचारे" का संदेश लेकर दरगाह में पेश की जाएगी।
चादर की यात्रा: यह चादर पहले हजरत निजामुद्दीन औलिया की दरगाह पर पेश की गई और फिर अजमेर शरीफ दरगाह भेजी जाएगी।
परंपरा की शुरुआत: इस परंपरा की शुरुआत 1947 में हुई थी और प्रधानमंत्री मोदी ने 2014 से हर साल चादर भेजने की परंपरा निभाई है।
ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती और उनकी विरासत
जन्म और जीवन: ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती का जन्म सिजिस्तान (वर्तमान सिस्तान, ईरान) में हुआ था।
भारत आगमन: वह 1192 में मोहम्मद गौरी के साथ भारत आए और अजमेर को अपनी आध्यात्मिक गतिविधियों का केंद्र बनाया।
आध्यात्मिक प्रवचन: उनकी शिक्षाओं में मोहब्बत, करुणा और सद्भाव का संदेश था, जो हर वर्ग और धर्म के लोगों को आकर्षित करता था।
दरगाह की लोकप्रियता: उनकी दरगाह पर अकबर, जहांगीर, शाहजहां और अन्य कई शासकों ने जियारत की।
चिश्ती सिलसिला: सूफीवाद का संदेश
चिश्ती सिलसिला की स्थापना: भारत में चिश्ती सिलसिले की शुरुआत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती ने की।
सिद्धांत: यह सिलसिला ईश्वर के साथ एकात्मकता और भौतिक वस्तुओं के त्याग पर आधारित है।
प्रमुख संत: बाबा फरीद, निजामुद्दीन औलिया और अमीर खुसरो जैसे संत इस सिलसिले के प्रमुख चेहरे रहे।
निजामुद्दीन औलिया: दिल्ली में सात सुल्तानों के शासनकाल के दौरान भी वह सुल्तानों के दरबार में नहीं गए और अपनी आध्यात्मिक स्वतंत्रता बनाए रखी।
उर्स का महत्व
पुण्यतिथि उत्सव: उर्स ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की पुण्यतिथि पर आयोजित होता है। यह समय श्रद्धालुओं के लिए विशेष महत्व रखता है।
आस्था का केंद्र: हर साल लाखों श्रद्धालु दरगाह पर चादर चढ़ाकर अपनी मन्नतें मांगते हैं।
विशेष आयोजन: उर्स के दौरान दरगाह विशेष रोशनी और सजावट से जगमगाता है।
अजमेर शरीफ दरगाह: भारत की सांस्कृतिक धरोहर
समृद्ध इतिहास: अजमेर शरीफ दरगाह न केवल मुसलमानों के लिए, बल्कि हर भारतीय के लिए गौरव और संस्कृति का प्रतीक है।
सांप्रदायिक सौहार्द: यह दरगाह भारत की गंगा-जमुनी तहज़ीब का प्रतीक है, जहां हर धर्म और जाति के लोग समान रूप से श्रद्धा व्यक्त करते हैं।
प्रधानमंत्री का संदेश: पीएम मोदी के अनुसार, यह अवसर सभी के जीवन में शांति और खुशहाली लाए।
समापन
अजमेर शरीफ दरगाह का उर्स सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि भारत की बहुलतावादी संस्कृति और आपसी सद्भाव का प्रतीक है। ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की शिक्षाएं और उनका संदेश आज भी प्रासंगिक हैं। प्रधानमंत्री द्वारा चादर भेजने की परंपरा इस आध्यात्मिक धरोहर के प्रति सम्मान का प्रतीक है।
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